मैं जिससे ओढ़ता बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ,
माटी को मानकर माँ अपनी मैं वारिस बन जाता हूँ.कोई इससे बर्बाद करे या छुपकर कोई बात कहे,या खाकर नमक इस माटी का कोई नमकहराम बने,...तब गुस्से में मैं आ जाता हूँ बर्दास्त नहीं कर पता हूँ....इसके सारे बेटों को भाई का नाता देता हूँ.बने कभी कुछ करते मुझसे तो आगे दिल रख देता हूँ.तुमने भी अपनी माँ को देखा है,वो भी इतनी ही अच्छी होगी जितनी मैं बतलाता हूँ.कोई गुनाह भी बड़ा नहीं तुमने कभी किया नहींमाँ की नजरो में तुम अच्छे ही बच्चे कहलाते हो.पर मुझको बतला दो तुम की कब तक देखेबीमारी और बहता माँ का हर ओर लहू.कुछ करने को ही तो जिंदा हैं या जिंदा रहने को बस जिंदा हैंमाँ हम तेरे प्यार को समझ न पाए माँ हम बहुत शर्मिंदा हैं.ये बात याद फिर दिलाता हूँ मैं जिससे ओढ़ता बिछाता हूँवो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ.
बहुत लाजवाब रचना| धन्यवाद|
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