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Saturday, March 12, 2011

हाई कोर्ट ने कहा, किसी को गाली देना अपराध नहीं

दिल्ली उच्च न्यायालय के अनुसार जवानों के बीच अपने साथियों के साथ बातचीत के दौरान गालियों व अपशब्दों का इस्तेमाल आम बात है। इसके साथ ही अदालत ने सीआईएसएफ के एक जवान को सेवा में बहाल करने का आदेश दे दिया, जिसे अपने वरिष्ठ साथी के साथ अपशब्दों के इस्तेमाल के आरोप में सेवामुक्त कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति सुरेश कैट की खण्डपीठ ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) इकाई आईओसी, पानीपत से बर्खास्त किए गए एक सिपाही कृष्ण पाल सिंह की याचिका पर यह फैसला सुनाया।
खंडपीठ ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि जीवन के अनुभव, कानून के तर्क से ज्यादा प्रामाणिक होते हैं। हमारा अनुभव हमें बताता है कि जवान आपस में बातचीत करते समय सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल करते हैं और मुक्त रूप से गालियों के साथ सवाल करते हैं।
अदालत का यह आदेश 16 दिसम्बर, 2002 को घटी उस घटना से सम्बंधित है, जिसमें कृष्ण पाल सिंह की एक उप निरीक्षक आर एल पंडित के साथ तकरार हो गई थी। पंडित सीआईएसएफ इकाई आईओसी, पानीपत के शिफ्ट प्रभारी थे।
सिंह ने आरोप लगाया था कि पंडित ने झगड़ा शुरू किया और उन्हें थप्पड़ मारा, जबकि पंडित का आरोप था कि सिंह ने उन्हें गाली दी और उन पर हमला किया।
घटना की प्रारम्भिक जांच के बाद सिंह को 17 दिसम्बर, 2002 को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया गया था।
सिंह ने जांच समिति को 16 दिसम्बर, 2002 को बताया था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और जब उनकी ड्यूटी रात नौ बजे समाप्त हो गई और उनकी जगह दूसरा जवान नहीं पहुंचा तो उन्होंने पंडित से फोन पर सम्पर्क किया और जानना चाहा कि उन्हें ड्यूटी से छुड़ाने के लिए दूसरा जवान क्यों नहीं पहुंचा।
याचिका के अनुसार पंडित ने कृष्णपाल से कहा था कि उन्होंने हेड कांस्टेबल देवेंद्र कुमार से अनुरोध किया है कि जब तक दूसरा कोई ड्यूटी पर नहीं पहुंच जाता है, तब तक वह सिंह की चौकी की निगरानी करें।
सिंह ने आरोप लगाया कि पंडित के कहे अनुसार, कुमार के पहुंचने के बाद वह ड्यूटी स्थल से चले गए और वहां से गेट संख्या एक पर गए, जहां पंडित ने उन्हें मां की गाली दी।
जांच के बाद सिंह को पूर्ण पेंशन लाभों के साथ अनिवार्य सेवानिवृत्ति का दंड दे दिया गया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि जो तथ्य हमारे सामने आए हैं, और जिनके कारण लड़ाई शुरू हुई, उसके अनुसार इस सम्भावित सच्चाई की ज्यादा सम्भावना है कि जब याचिकाकर्ता गेट संख्या एक पर पहुंचा तो उप निरीक्षक आर एल पंडित ने सहज मस्ती में अपशब्दों का इस्तेमाल किया।
पीठ ने कहा कि तबीयत ठीक न होने के कारण याचिकाकर्ता का मन अच्छा नहीं था और वह इस तरह की भाषा बर्दाश्त नहीं कर सका, और इसके कारण विवाद शुरू हो गया और उसके बाद हाथापाई हुई।
पीठ ने कहा कि हमने पाया कि इस मामले में परिस्थिति और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न तो अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने विश्लेषण किया, न तो अपीली प्राधिकरण ने और न पुनरीक्षण प्राधिकरण ने ही। उप निरीक्षक ने झूठी गवाही दी थी।
अदालत ने जांच अधिकारी की राय को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि सिंह को तत्काल सेवा में बहाल किया जाए और 10 मार्च से पूर्ण वेतन दिया जाए।